कांवड़ यात्रा: सुल्तानगंज से देवघर तक – आस्था, इतिहास और आध्यात्मिकता की एक अनुपम यात्रा

1. सुल्तानगंज – पुराना नाम और संक्षिप्त इतिहास

सुल्तानगंज बिहार के भागलपुर ज़िले में स्थित एक पवित्र तीर्थस्थल है। इसका प्राचीन नाम ‘कुंभस्थान’ था। मान्यता है कि यहां गंगा नदी उत्तरवाहिनी होकर बहती है, जो पूरे भारत में एक दुर्लभ स्थान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह स्थान प्राचीन काल में ऋषियों की तपोभूमि था। यहां स्थित अजगैवीनाथ मंदिर, जिसे ‘गुप्तकाशी’ भी कहा जाता है, भगवान शिव को समर्पित है।

सुल्तानगंज में गंगा का प्रवाह उत्तर की ओर होने के कारण यहां से जल लेकर देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम तक कांवड़ यात्रा करने की परंपरा है।

2. यात्रा की दूरी और मार्ग

सुल्तानगंज से देवघर तक की दूरी लगभग 105 किलोमीटर है। यह यात्रा श्रद्धालु पैदल तय करते हैं और इस दौरान “बोल बम” के जयघोष से पूरा मार्ग गुंजायमान रहता है। कांवड़िये गंगा से पवित्र जल भरकर, उसे अपने कंधे पर रखी दो कलशों वाली कांवड़ में लटकाकर देवघर तक बिना जमीन पर रखे पहुंचाते हैं।

3. प्रमुख स्थान (स्टॉपेज) इस यात्रा में आते हैं:

सुल्तानगंज (गंगा जल भरने का स्थान), असनसोल, कसबा, झाझा, चन्दन, सरवा, देवघर (बाबा बैद्यनाथ धाम) 

कई स्थानों पर कांवड़ शिविर लगते हैं, जहाँ विश्राम, भंडारा, दवा और चिकित्सा की सुविधा मिलती है।

4. देवघर – पौराणिक इतिहास

देवघर को ‘बाबा धाम’, ‘बैद्यनाथ धाम’ या ‘बाबा बैद्यनाथ’ के नाम से जाना जाता है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह 51 शक्तिपीठों में भी सम्मिलित है।

पौराणिक कथा:

रावण, भगवान शिव का परम भक्त था। उसने तप करके शिवजी को प्रसन्न किया और उनसे शिवलिंग (ज्योतिर्लिंग) माँगा, जिससे वह लंका को अजर-अमर बना सके। भगवान शिव ने उसे शिवलिंग सौंपते हुए यह शर्त रखी कि वह उसे कहीं भी धरती पर नहीं रखे, वरना वह वहीं स्थापित हो जाएगा।

रावण जब लंका की ओर लौट रहा था, तब देवताओं ने उसकी परीक्षा लेने हेतु विष्णु जी के आदेश पर वरुण देव ने उसके पेट में जल भर दिया। रावण को लघुशंका की आवश्यकता हुई और उसने एक ग्वाले (भगवान विष्णु के रूप में) को शिवलिंग थमा दिया। ग्वाले ने शिवलिंग को धरती पर रख दिया और वह वहीं स्थापित हो गया — यही स्थान आज बैद्यनाथ धाम है।

यहाँ पर रावण द्वारा किए गए जलाभिषेक की परंपरा को ही कांवड़ यात्रा के रूप में देखा जाता है।

5. बैद्यनाथ के पास स्थित अन्य दर्शनीय स्थल

शिवगंगा तालाब: बाबा धाम मंदिर के पास स्थित पवित्र जलकुंड।

नौलखा मंदिर: रानी चंद्रवती द्वारा बनवाया गया सुंदर मंदिर, जिसकी लागत 9 लाख रुपए थी।

त्रिकूट पर्वत: जहाँ पर हनुमान जी ने संजीवनी बूटी के लिए उड़ान भरी थी।

तपोवन: ऋषियों की तपोभूमि और सुंदर गुफाएँ।

बासुकीनाथ (जिला दुमका, झारखंड): मान्यता है कि जब तक कांवड़िया देवघर में बाबा बैद्यनाथ को जल नहीं चढ़ाता, तब तक बासुकीनाथ के शिव को प्रसन्न नहीं माना जाता।

6. कांवड़ यात्रा का विशेष महत्त्व

यह यात्रा सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि त्याग, अनुशासन, संयम और साधना का प्रतीक है।

संकल्प होता है कि जल को बिना धरती पर रखे, बिना मांस-मदिरा के सेवन के, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए यात्रा पूरी की जाए।

श्रद्धालु पूरे मार्ग में नंगे पांव चलते हैं, और केवल “बोल बम” का उच्चारण करते हैं।

7. निष्कर्ष

कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवंत अध्यात्मिक अनुभव है, जिसमें हजारों लोग भक्ति की शक्ति से प्रेरित होकर कठिन रास्ता तय करते हैं। सुल्तानगंज से देवघर की यह पवित्र यात्रा, हमारे प्राचीन इतिहास, पौराणिक परंपराओं और व्यक्तिगत आस्था का संगम है।

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राहु एक छाया ग्रह इसके दु:श प्रभाव और उनका निवारण

राहु - एक रहस्यमयी छाया ग्रह

पौराणिक कथा (Pauranik Katha)

राहु का जन्म समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है। जब असुर और देवता अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तब भगवान धन्वंतरि ने अमृत कलश निकाला। देवताओं ने छल से अमृत पान की योजना बनाई। लेकिन एक असुर ‘स्वर्णभानु’ ने रूप बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पी लिया। तभी भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर उसे पहचान लिया और सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

उसने अमृत का एक घूंट पी ही लिया था, जिससे उसका सिर अमर हो गया। यह सिर “राहु” के रूप में और धड़ “केतु” के रूप में जाना गया।

राहु का वंश और पद (Hierarchy of Rahu)

राहु को असुरों का सेनापति और गुरु माना गया है। यह नवग्रहों में एक विशेष स्थान रखता है, हालांकि इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। इसे ‘छाया ग्रह’ कहा जाता है। इसका संबंध अधर्म, छल, भ्रम, विदेशी संस्कृतियों और भौतिक सुखों से माना जाता है।

राहु और अमृतपान (Rahu aur Amritpan)

अमृतपान की घटना ने राहु को अजर-अमर बना दिया। इस कारण यह अन्य ग्रहों के समान चिरस्थायी प्रभाव डालता है, लेकिन इसका प्रभाव भ्रम और छद्म से भरा होता है।

राहु और ग्रहण (Rahu aur Grahan Katha)

जब राहु को पता चला कि सूर्य और चंद्र ने उसकी पहचान बताकर उसका वध कराया, तब वह उनसे बदला लेने लगा। कहा जाता है कि सूर्य और चंद्र को समय-समय पर राहु ग्रस लेता है — इसे ही सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहा गया है।

राहु और हनुमान जी (Rahu aur Hanuman Ji)

एक कथा के अनुसार बाल्यावस्था में जब हनुमान जी सूर्य को फल समझकर निगलने गए, तब राहु जो सूर्य को ग्रहण लगाने जा रहा था, डर गया और इंद्र के पास शिकायत करने गया। इंद्र ने वज्र से हनुमान जी पर प्रहार किया जिससे उनका जबड़ा टूट गया। पर बाद में ब्रह्मा और अन्य देवताओं ने उन्हें अनेक वरदान दिए — जिससे वे अजर-अमर बन गए।

राहु ने तबसे हनुमान जी से भय खाना शुरू कर दिया, और यही कारण है कि राहु की शांति के लिए हनुमान पूजन सर्वोत्तम उपाय माना गया है।

राहु के बारह भावों में प्रभाव (Rahu in 12 Houses)
भाव नकारात्मक प्रभाव सकारात्मक प्रभाव
1. भ्रम, मानसिक अशांति विश्लेषणात्मक बुद्धि, विदेशी संपर्क
2. वाणी दोष, धन की हानि विदेशी मुद्रा से लाभ
3. छोटे भाई से दूरी साहस राजनीति में सफलता
4. माता से कष्ट, वाहन दुर्घटना विदेश में प्रॉपर्टी
5. प्रेम संबंध में धोखा अनुसंधान, गूढ़ विषयों में रुचि
6. शत्रु वृद्धि, कोर्ट केस रोगों पर विजय, गुप्त शत्रु पर नियंत्रण
7. वैवाहिक जीवन में धोखा विदेशी जीवनसाथी, बिजनेस में जोखिम से लाभ
8. दुर्घटना, मानसिक तनाव ज्योतिष, रहस्य विद्या में रुचि
9. धर्म से भ्रमित, गुरु से द्वेष विदेश यात्रा, अंतरराष्ट्रीय कार्य
10. पेशे में झूठ, धोखा गुप्त योजनाओं से सफलता
11. गलत मित्र, लालच तकनीकी क्षेत्र में अचानक लाभ
12. मानसिक कष्ट, जेल, व्यसन आध्यात्मिक जागरण, विदेश में सिद्धि
राहु के उपाय (Remedies of Rahu)

1. पाराशर ऋषि के अनुसार उपाय
हनुमान चालीसा का नित्य पाठ

राहु की दशा में भगवान शिव की उपासना

काले तिल का दान

नाग पूजा और विशेष रूप से सोमवार को व्रत

2. लाल किताब के अनुसार उपाय
काले कपड़े का प्रयोग कम करें

सुरमा बहते पानी में प्रवाहित करें

काले-सफेद कंबल का दान

सरसो का तेल काले कुत्ते पर लगाना

रात में चंद्रमा की रोशनी में बैठना

राहु से जुड़ी अन्य खास बातें

राहु कंप्यूटर, इंटरनेट, साइबर क्राइम, राजनीति में छिपे षड्यंत्रों का कारक है।

राहु उच्च कोटि की तकनीकी, गुप्त विद्याओं और साइकोलॉजिकल पथों का प्रतिनिधि है।

राहु का प्रभाव असाधारण प्रतिभा, परंतु मानसिक अस्थिरता देता है।

प्रैक्टिकल सुझाव (Practical Tips)

जिनकी कुण्डली में राहु अशुभ है, उन्हें नियमित रूप से “ॐ रामदूताय नमः” का जाप करना चाहिए।

राहु के दोष से मुक्ति के लिए “हनुमान जी के चमत्कारी चांदी के लॉकेट” या “पंचमुखी हनुमान यंत्र” धारण करना लाभकारी है।

‘राहु शांति के लिए हनुमान जी का तांबे का फ्रेम और सात सिक्कों वाला सेट’ पूजन altar में स्थापित करें।

सिंहिका — राहु की माता और छाया पकड़ने वाली राक्षसी

राहु की माता का नाम सिंहिका था, जो एक राक्षसी थी। उसकी एक विशेष शक्ति थी — वह किसी भी जीव की “छाया पकड़कर” उसे निष्क्रिय कर सकती थी। यह शक्ति अत्यंत दुर्लभ और भयावह मानी जाती थी।

जब हनुमान जी समुद्र लांघ रहे थे (लंका जाने के समय), तब सिंहिका ने उनकी छाया पकड़कर उन्हें रोकने का प्रयास किया। लेकिन हनुमान जी ने तुरंत पहचान लिया कि यह मायावी शक्ति है और सिंहिका का वध कर दिया।

इस घटना से यह सिद्ध होता है कि हनुमान जी, राहु की मूल शक्ति पर भी विजय प्राप्त कर चुके हैं, और इसलिए राहु की शांति हेतु हनुमान उपासना सर्वोत्तम मानी जाती है।

राहु क्यों कहलाता है "छाया ग्रह"

राहु का शरीर नहीं है, केवल सिर है। उसकी माता सिंहिका छाया पकड़ने की सामर्थ्य रखती थी। राहु स्वयं अमूर्त है — केवल छाया के रूप में कार्य करता है। अतः उसे ‘छाया ग्रह’ कहा जाता है, जो केवल मानसिक, भ्रमात्मक और अवास्तविक प्रभाव डालता है।

राहु और केतु — सोच बनाम क्रिया का द्वंद्व

राहु = केवल सिर (मस्तिष्क) — यह सिर्फ सोचता है।
केतु = केवल धड़ (शरीर) — यह सिर्फ करता है।

राहु की नकारात्मक दशा में व्यक्ति सोचता है, फिर सोचता है, और फिर उल्टी दिशा में सोचता है — जिससे उसके निर्णय कभी स्थिर नहीं होते।

दूसरी ओर, केतु सोचता नहीं, बस करता है — बिना उद्देश्य के, बिना दिशा के। इसीलिए केतु के प्रभाव में व्यक्ति बिना सोचे किसी रहस्यमयी दिशा में चल पड़ता है।

उलटी सोच — राहु का सबसे अद्भुत उपाय (Reverse Thinking as Rahu Remedy)

आपके अध्ययन के अनुसार — और यह बहुत ही मौलिक है —
जब राहु किसी के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डाल रहा हो, तो जो भी वह सोचता है, राहु उसे पलट देता है।

इसलिए, अगर आप सकारात्मक सोचेंगे — राहु उल्टा असर देगा और नतीजा नकारात्मक हो सकता है।
लेकिन अगर आप नकारात्मक सोचेंगे — जैसे: “मुझसे यह नहीं होगा” — राहु उसका भी उल्टा करेगा — और आप सफल हो जाएंगे।

इसीलिए राहु की दशा में —

“विपरीत मनन” (Reverse Thinking) ही सही उपाय है।

यह उपाय केवल मानसिक स्तर पर कार्य करता है और राहु के भ्रम-जाल को उलट कर मन को स्थिर करता है।

हनुमान जी — राहु के भय का अंत

राहु और सिंहिका, दोनों हनुमान जी से पराजित हैं।
इसीलिए:

हनुमान जी की उपासना राहु के भय, भ्रम, और सोच की उलझनों से मुक्त करने का सर्वोत्तम उपाय है।

“हनुमान चालीसा”

पंचमुखी हनुमान लॉकेट

तांबे का हनुमान चित्र फ्रेम

राहु पीड़ितों के लिए 7 हनुमान सिक्कों वाला सेट

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