
सुल्तानगंज बिहार के भागलपुर ज़िले में स्थित एक पवित्र तीर्थस्थल है। इसका प्राचीन नाम ‘कुंभस्थान’ था। मान्यता है कि यहां गंगा नदी उत्तरवाहिनी होकर बहती है, जो पूरे भारत में एक दुर्लभ स्थान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह स्थान प्राचीन काल में ऋषियों की तपोभूमि था। यहां स्थित अजगैवीनाथ मंदिर, जिसे ‘गुप्तकाशी’ भी कहा जाता है, भगवान शिव को समर्पित है।
सुल्तानगंज में गंगा का प्रवाह उत्तर की ओर होने के कारण यहां से जल लेकर देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम तक कांवड़ यात्रा करने की परंपरा है।
सुल्तानगंज से देवघर तक की दूरी लगभग 105 किलोमीटर है। यह यात्रा श्रद्धालु पैदल तय करते हैं और इस दौरान “बोल बम” के जयघोष से पूरा मार्ग गुंजायमान रहता है। कांवड़िये गंगा से पवित्र जल भरकर, उसे अपने कंधे पर रखी दो कलशों वाली कांवड़ में लटकाकर देवघर तक बिना जमीन पर रखे पहुंचाते हैं।
सुल्तानगंज (गंगा जल भरने का स्थान), असनसोल, कसबा, झाझा, चन्दन, सरवा, देवघर (बाबा बैद्यनाथ धाम)
कई स्थानों पर कांवड़ शिविर लगते हैं, जहाँ विश्राम, भंडारा, दवा और चिकित्सा की सुविधा मिलती है।
देवघर को ‘बाबा धाम’, ‘बैद्यनाथ धाम’ या ‘बाबा बैद्यनाथ’ के नाम से जाना जाता है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह 51 शक्तिपीठों में भी सम्मिलित है।
रावण, भगवान शिव का परम भक्त था। उसने तप करके शिवजी को प्रसन्न किया और उनसे शिवलिंग (ज्योतिर्लिंग) माँगा, जिससे वह लंका को अजर-अमर बना सके। भगवान शिव ने उसे शिवलिंग सौंपते हुए यह शर्त रखी कि वह उसे कहीं भी धरती पर नहीं रखे, वरना वह वहीं स्थापित हो जाएगा।
रावण जब लंका की ओर लौट रहा था, तब देवताओं ने उसकी परीक्षा लेने हेतु विष्णु जी के आदेश पर वरुण देव ने उसके पेट में जल भर दिया। रावण को लघुशंका की आवश्यकता हुई और उसने एक ग्वाले (भगवान विष्णु के रूप में) को शिवलिंग थमा दिया। ग्वाले ने शिवलिंग को धरती पर रख दिया और वह वहीं स्थापित हो गया — यही स्थान आज बैद्यनाथ धाम है।
यहाँ पर रावण द्वारा किए गए जलाभिषेक की परंपरा को ही कांवड़ यात्रा के रूप में देखा जाता है।
शिवगंगा तालाब: बाबा धाम मंदिर के पास स्थित पवित्र जलकुंड।
नौलखा मंदिर: रानी चंद्रवती द्वारा बनवाया गया सुंदर मंदिर, जिसकी लागत 9 लाख रुपए थी।
त्रिकूट पर्वत: जहाँ पर हनुमान जी ने संजीवनी बूटी के लिए उड़ान भरी थी।
तपोवन: ऋषियों की तपोभूमि और सुंदर गुफाएँ।
बासुकीनाथ (जिला दुमका, झारखंड): मान्यता है कि जब तक कांवड़िया देवघर में बाबा बैद्यनाथ को जल नहीं चढ़ाता, तब तक बासुकीनाथ के शिव को प्रसन्न नहीं माना जाता।
यह यात्रा सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि त्याग, अनुशासन, संयम और साधना का प्रतीक है।
संकल्प होता है कि जल को बिना धरती पर रखे, बिना मांस-मदिरा के सेवन के, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए यात्रा पूरी की जाए।
श्रद्धालु पूरे मार्ग में नंगे पांव चलते हैं, और केवल “बोल बम” का उच्चारण करते हैं।
कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवंत अध्यात्मिक अनुभव है, जिसमें हजारों लोग भक्ति की शक्ति से प्रेरित होकर कठिन रास्ता तय करते हैं। सुल्तानगंज से देवघर की यह पवित्र यात्रा, हमारे प्राचीन इतिहास, पौराणिक परंपराओं और व्यक्तिगत आस्था का संगम है।